सारे जहाँ से अच्छा या तराना-ए-हिन्दी
It was written by Allama Iqbal in 1905. It was published in 'Bang e Dara'.
सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा।
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिस्ताँ हमारा॥
ग़ुरबत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में।
समझो वहीं हमें भी, दिल हो जहाँ हमारा॥ सारे...
परबत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमाँ का।
वो संतरी हमारा, वो पासबाँ हमारा॥ सारे...
गोदी में खेलती हैं, उसकी हज़ारों नदियाँ।
गुलशन है जिनके दम से, रश्क-ए-जिनाँ हमारा॥ सारे....
ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा! वो दिन है याद तुझको।
उतरा तेरे किनारे, जब कारवाँ हमारा॥ सारे...
मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना।
हिन्दी हैं हम वतन हैं, हिन्दोस्ताँ हमारा॥ सारे...
यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा, सब मिट गए जहाँ से।
अब तक मगर है बाक़ी, नाम-ओ-निशाँ हमारा॥ सारे...
कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी।
सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-ज़माँ हमारा॥ सारे...
'इक़बाल' कोई महरम, अपना नहीं जहाँ में।
मालूम क्या किसी को, दर्द-ए-निहाँ हमारा॥ सारे...
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